The History of Ancient India
नमस्ते दोस्तोें हम अपको इतिहास के पार्ट-3 में Prachin bharat ke itihas के बारे में बताएंगे। ये पोस्ट Lucent, General Knowledge से ली गई है। हमने इस पोस्ट के माध्यम से अपको प्राचीन भारत केे इतिहास के बारेे में सरल भाषा में समझाने की कोशिश की है, जिसे पढ़कर आपको आसानी से समझ आ जायेगा।
हमने प्राचीन भारत के इतिहास के पार्ट-3 में आपको मगध राज्य का उत्कर्ष, सिकन्दर, मौर्य साम्राज्य, बिन्दुसार, अशोक व गुप्त साम्राज्य के बारे में विस्तार से व सरल भाषा में इस पोस्ट के माध्यम से बताया है। हम और भी ऐसी पोस्ट आपके लिये अपनी Website पर डालेंगे, जिससे की इस पोस्ट से आपका फायदा हो। मेरा आपसे निवेदन है कि मेरे इस पेज को अपने Bookmark में Save कर ले, और समय-समय पर इसे देखते रहे, ताकी जो भी मेरी नई पोस्ट आये उसे आप आसानी से देख सकें।
प्राचीन भारत पार्ट – 3
8. मगध राज्य का उत्कर्ष
मगध राज्य के सबसे पुराने वंश के संस्थापक बृहद्रथ थे। मगध की राजधानी गिरिब्रज (राजगृह) थी। बृहद्रथ का पुत्र जरासंघ था। मगध राज्य की गददी पर हर्यक वंश के संस्थापक बिम्बिसार 544 ई.पू. में बैठा था, वह बोद्ध धर्म को मानने वाला था प्रशासनिक व्यवस्था पर बल देने वाला यह पहला भारतीय राजा था। बिम्बिसार ने बृहद्रथ को युद्ध में परास्त कर अंग राज्य को मगध में शामिल कर लिया था। बिम्बिसार ने गिरिब्रज (राजगृह) का निर्माण किया व उसे अपनी राजधानी बनाया। बिॅम्बिसार ने 52 वर्षो तक मगध की गददी पर राज किया।
बिम्बिसार ने अपने राज्य का विस्तार वैवाहिक संबध स्थापित कर किया, इसने प्रसेनजित कोशली नरेश की बहन महाकोशला से, वैशाली के चेटक की पुत्री चेल्लना से तथा मद्र देश की राजकुमारी क्षेमा से शादी की। अजातशत्रु ने अपने पिता बिम्बिसार की हत्या कर 493 ई.पू. में मगध राज्य की गददी पर बैठा। अजातशत्रु का उपनाम कुणिक था। वह प्रारंभ से ही जैन धर्म को मानते थे। 32 वर्षो तक अजातशत्रु ने मगध पर राज किया। अजातशत्रु के सुयोग्य मंत्री वर्षकार की मदद से अजातशत्रु ने वैशाली पर विजय हासिल की।
461 ई.पु. में उदायिन द्वारा अपने पिता अजातशत्रु की हत्या कर मगध की राज गददी पर बैठा। पाटिलग्राम की स्थापना उदायिन ने की थी वह जैन धर्म को मानता था। नागदशक जो की उदायिन का पुत्र था जो हर्यकवंश का अंतिम राजा था। 412 ई.पू. में शिशुनाग जो की नागदशक के अमात्य थे उन्हे अपदस्थ करके मगध पर शिशुनाग वंश की स्थापना की। शिशुनाग ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से हटाकर वैशाली में स्थापित की। कालाशोक जो की शिशुनाग का उत्तराधिकारी था वह पुन: राजधानी को पाटलीपुत्र से ले गया। शिशुनागवंश का अतिंम राजा नंदिवर्धन था। महापद्यनंद नंदवंश का संस्थापक था। घानानंद नंदवंश का अतिंम शासक था। यह सिकन्दर का समकालीन था। चन्द्रगुप्त मोर्य द्वारा इसे युद्ध में परास्त कर मगध पर एक नये वंश ‘’मोर्य वंश’’ की स्थापना की।
9. सिकन्दर
सिकन्दर का पुरा नाम अलेक्जेंडर द ग्रेट था। सिकन्दर का जन्म प्राचीन नेपालियन की राजधानी पेला में 356 ई.पू. में हुआ था। इनके पिता का नाम फिलिप था। फिलिप मकदूनिया का 359 ई.पू. में शासक बना और 329 ई. पू. में इनकी हत्या कर दी गई। सिकन्दर की एक बहन भी थी जिसका नाम क्लियोपेट्रा था। अरस्तु सिकन्दर के गुरू का नाम था। सिकन्दर ने 326 ई. पू. में भारत-विजय का अभियान प्रारंभ किया। सिकन्दर का सेनापति सेल्युकस निकेटर था। सिकन्दर को पंजाब के शासक पोरस के साथ युद्ध करना पड़ा जिसे हाइडेस्पीज के युद्ध या झेलम का युद्ध के नाम से जाना जाता है।
सिकन्दर 325 ई.पू. में स्थल मार्ग द्वारा भारत से लौटा। नियकिस सिकन्दर का जल सेनापति था। सिकन्दर का प्रिय घोड़ा बउकेफला था इसी के नाम पर इसने झेलम नदी के तट पर बउकेफला नामक एक नगर बसाया। सिकन्दर की मृत्यु 325 ई.पू. में बेबीलोन में 33 वर्ष की अवस्था में हो गयी।
10. मोर्य साम्राज्य
मोर्य वंश की स्थापना चन्द्रगुप्त मोर्य ने की थी। इनका जन्म 345 ई.पू. में हुआ था। जस्टिन ने इन्हे सेन्ड्रोकोटटस कहा है जिसकी पहचान विलियम जोन्स ने चन्द्रगुपत मोर्य से की थी। चन्द्रगुप्त मोर्य द्वारा घनांनद को पराजित करने में चाणक्य ने सहायता की थी, जो बाद में चन्द्रगुप्त मोर्य का प्रधानमत्री बना। इसके द्वारा लिखी पुस्तक अर्थशास्त्र है। जिसकी संबध राजनीति से है। मगध की गददी पर चन्द्रगुप्त मोर्य 322 ई.पू. में बैठा। चन्द्रगुप्त जैन धर्म को मनता था। चन्द्रगुप्त ने अपना अंतिम समय कर्नाटक के श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर बिताया। 305 ई.पू. में चन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस निकेटर को हराया। सेल्यूकस निकेटर ने अपनी पुत्री कार्नेलिया की शादी चन्द्रगुप्त मोर्य के साथ कर दी, और युद्ध की संधी शर्तो के अनुसार चार प्रांत काबुल, कन्धार, हेरात, एवं मकरान चन्द्रगुप्त को दिए। सेल्यूकस निकेटर का राजदूत मेगस्थनीज था। जो चन्द्रगुप्त के दरबार में रहता था। मेगस्थनीज द्वारा लिखी गयी पुस्तक इंडिका है। सेल्यूकस और चन्द्रगुप्त मोर्य के बिच हुए युद्ध का वर्णन एम्पियानस ने किया है। प्लूटार्क के अनुसार चन्द्रगुप्त मोर्य ने सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार में दिए थे। 298 ई.पू. में श्रवणबेलगोला में उपवास द्वारा चन्द्रगुप्त की मृत्यु हुई।
11. बिन्दुसार
बिन्दुसार चन्द्रगुप्त मोर्य का उत्तराधिकारी बना, जो मगध की गददी पर 298 ई.पू. में बैठा। बिन्दुसार अमित्रघात के नाम से जाना जाता है। इसका अर्थ है। शत्रु विनाशक।
बिन्दुसार आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था। जैन ग्रन्थो में बिन्दुसार को सिंहसेन कहा जाता है। बिन्दुसार शासनकाल में तक्षशिला (सिन्धु एवं झेलम नदी के बीच) में हुए दो विद्रोहो का वर्णन है। इस विद्रोह को दबाने के लिए बिन्दुसार ने पहले सुसीम को और बाद में अशाक को भेजा। बौद्ध विद्वान तारानाथ ने बिन्दुसार को 16 राज्यो का विजेता बताया है।
12. अशोक
अशोक महान बिन्दुसार का उत्तराधिकारी बना जो मगध राज्य सिंहासन पर 269 ई.पू. में बैठा। अशोक की माता का नाम सुभद्रागीं था। अशोक सिंहासन पर बैठने के समय अवन्ति का राज्यपाल था। पुराणों में अशोक महान को अशोकवर्धन कहा गया है। लगभग 261 ई.पू. में अशोक ने अपने अभिषेक के 8 वर्ष बाद कलिंग पर हमला किया और तोसली जो की कंलिग की राजधानी थी उस पर अधिकार कर लिया।
अशोक को उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु ने बौद्ध धर्म की दीक्षा दी। अशोक ने बराबर की गुफाओं का निर्माण आजीवकों के रहने हेतु करवाया। जिनका नाम कर्ज, चोपार, सुदामा तथा विश्व झोपड़ी था। आजीविकों का उल्लेख अशोक के 7वें स्तम्भ लेख में किया गया है। तथा आजीविकों के हितो का ध्यान रखने के लिये महामात्रो को कहा गया।
अशोक ने अपने पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भेजा। बौद्ध की लिपियों व उनकी परंपरा के अनुसार 84000 स्पूपों का निर्माण अशोक ने किया था। सर्वप्रथम अशोक ने शिलालेख का प्रचलन भारत में किया। ब्राहमी, खरोष्ठी, ग्रीक एवं अरमाइक लिपि का प्रयोग अशोक के शिलालेखों में हुआ है।
अशोक के अभिलेखों को तीन भागो में बांटा जा सकता है। 1. शिलालेख 2. स्तम्भलेख तथा 3. गुहालेख
1750 ई. में अशोक के शिलालेख की खोज पाद्रेटी फेन्थैलर ने की थी इनकी संख्या 14 है।
अशोक के प्रमुख अभिलेख एवं उनमें वर्णित विषय
पहला शिलालेख | इसमे शिलालेख में पशुबलि की निंदा की गई है। |
दूसरा शिलालेख | इसमें मनुष्य और पशु दोनों की चिकित्सा व्यवस्था का उल्लेख किया है। |
तीसरा शिलालेख | इसमें राजकीय अधिकारियों को यह आदेश दिया गया है कि वे हर पांचवे वर्ष के उपरान्त दौर पर जाएं। इस शिलालेख में कुछ धार्मिक नियमों का भी वर्णन किया गया है। |
चौथा शिलालेख | इस अभिलेख में भेरीघोष की जगह धम्मघोष की घोष्णा की गयी है। |
पांचवां शिलालेख | इस शिलालेख में धर्म महामात्रों की नियुक्ति के विषय में जानकारी मिलती है। |
छठा शिलालेख | इसमें आत्म नियंत्रण की शिक्षा दी गई है। |
सातवां एवं आंठवा शिलालेख | इसमें अशोक की तीर्थ यात्राओं का उल्लेख किया गया है। |
नौवां शिलालेख | इसमें सच्ची भेट तथा सच्चे शिष्ठाचार का उल्लेख किया गया है। |
दसवां शिलालेख | इसमें अशोक ने आदेश दिया है कि राजा तथा उच्च अधिकारी हमेशा प्रजा के हित में सोचें। |
ग्यारहवां शिलालेख | इसमें धम्म की व्याख्या की गई है। |
बारहवां शिलालेख | इसमें स्त्री महामात्रों की नियुक्ति एवं सभी प्रकार के विचारों के सम्मान की बात कही गयी है। |
तेरहवां शिलालेख | इसमे कलिंग युद्ध का वर्णन एवं अशोक के हदय परिवर्तन की बात कही गई है। इसी में पांच यवन राजाओं का उल्लेख है, जहां उसने धम्म प्रचारक भेजे। |
चौदहवां शिलालेख | अशोक ने जनता को धार्मिक जीवन बिताने के लिये प्रेरित किया। |
अशोक के स्तम्भ लेखों की संख्या 7 है। जो केवल ब्राहमी लिपि में लिखी गयी है। यह छ: अलग-अलग स्थानो से प्राप्त हुआ है।
1) प्रयाग स्तम्भ लेख – यह पहले कौशाम्बी में था। इसको अकबर ने इलाहबाद के किले में स्थापिता कराया।
2) दिल्ली टोपरा – यह दिल्ली में फिरोजशाह तुगलक के द्वारा टोपरा से लाया गया।
3) दिल्ली मेरठ – फिरोजशाह द्वारा यह स्तम्भ मेरठ से दिल्ली लाया गया।
4) रामपुरवा – इसकी खोज कारलायस ने 1872 में चम्पारण (बिहार) से की।
5) लौरिया अरेराज – चम्पारण (बिहार) में।
6) लौरिया नन्दनगढ़– चम्पारण (बिहार) में इस पर मोर का चित्र बना हुआ है।
अशोक का 7वां अभिलेख सबसे लम्बा है। कौशाम्बी अभिलेख को ‘’रानी का अभिलेख’’ कहा जाता है।
मोर्य साम्राज्य मे अशोक के समय प्रांतो की संख्या 5 थी इन प्रांतो को चक्र कहा जाता था। प्रांतो के जो प्रशासक हुआ करते थे उन्हे कुमार या आर्यपुत्र या राष्ट्रिक कहते थे। इसमें प्रशासन की सबसे छोटी ईकाई ग्राम थी जिसका प्रमुख ग्रामीक कहलाता था। जो दस ग्रामों को संभालता था वह सबसे छोटा होता है व गोपा कहलाता है। मेगस्थनीज के अनुसार नगर का प्रशासन 30 सदस्यों का एक मंडल करता था जो 6 समितियों में विभाजित था। प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे। बिक्री कर के रूप में मूल्य का 10 वां भाग वसूला जाता था, इसे बचाने वालों को मृत्युदंड दिया जाता था।
जस्टिन के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना में लगभग 50,000 अश्वारोही सैनिक, 9000 हाथी व 8000 रथ थे। जस्टिन नामक यूनानी लेखक के अनुसार 6 लाख की फौज से चन्द्रगुप्त ने पुरे भारत को रौंद दिया था। युद्ध क्षेत्र में सेना का नेतृत्व करने वाला अधिकारी नायक कहलाता था। सेनापति सैन्य विभाग का सबसे बडा अधिकारी होता था। आशोक के समय राजुक जनपदीय न्यायालयय के न्यायाधीश को कहा जाता था। और सीता भूमि सरकारी भूमि को कहा जाता था। मेगस्थनीज ने भारतीय समाज को सात भागो में बांटा है- 1. दार्शनिक 2. किसान 3. अहीर 4. कारीगर 5. सैनिक 6. निरीक्षक एवं 7. सभासद। रूपाजीवा स्वतंत्र वेश्यावृत्ति को अपनाने वाली महिला को कहा जाता था। कश्मीर के राजा पर्वतक ने नंदवंश के विनाश करने में चन्द्रगुप्त की सहायता की थी।
137 वर्षो तक मौर्य शासन रहा। भागवत पुराण के अनुसार मौर्य वंश दस राजा हुए जबकि वायु पुराण के अनुसार नौ राजा हुए। बृहद्रथ मौर्य वंश का अंतिम शासक था। 185 ईसा पूर्व में इसकी हत्या इसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी और मगध पर शुंग वंश की नींव डाली।
13. गुप्त साम्राज्य
तीसरी शताब्दी के अंत में प्रयाग के निकट कौशाम्बी मैं गुप्त साम्राज्य का उदय हुआ।
गुप्त वंश का संस्थापक श्रीगुप्त (240-280) ई. था।
घटोत्कच (280-320 ई.) श्रीगुप्त का उत्तराधिकारी हुआ।
चन्द्रगुप्त प्रथम गुप्त वंश का प्रथम महान सम्राट था। 320 ई. में यह गददी पर बैठा।
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