डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जीवनी
Dr. Bhimrao Ambedkar Biography – आज हम इस पोस्ट के माध्यम से ऐसे व्यक्ति के बारे मे बताने जा रहे है जिसने देश के सविंधान व राष्ट्र का निर्माण किया है constitution and nation building dr. Bhimrao ambedkar जो दलितो के मसिहा के रूप में उजागर हुए थे जिन्होने अपना एक अलग ही वर्चस्व स्थापित किया था। वे महान व्यक्ति डॉ. भीमराव अम्बेडकर है। आज हम उन्ही के जीवन के बारे में आपको बताऐगे। Dr. Bhimrao Ambedkar ki kahani
अनुक्रम –
डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी के बारे में जानकारी
डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी का जन्म एवं परिवार
डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी बचपन
डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी की शिक्षा
डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी का विवाह
डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी का जाति व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन
डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी का राजनैतिक करियर
डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी द्वारा भारतीय संविधान का गठन
डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी द्वारा लिखी गई पुस्तकें
डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी की मृत्यु
डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी के बारे में रोचक तथ्य
डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी के बारे में जानकारी –
वास्तविक नाम | भीमराव रामजी अम्बेडकर |
उपनाम | बाबा साहेब, बोधिसत्व, भीम, भीवा |
जन्म | 14 अप्रैल 1891 |
जन्म स्थान | मध्य भारत प्रांत (अब मध्यप्रदेश में) मैं सेन्य छावनी महू |
पिता का नाम | रामजी सकपाल सूबेदार |
माता का नाम | भीमाबाई सकपाल |
पत्नी | पहली रमाबाई अम्बेडकर, दुसरी डॉ. सविता अम्बेडकर |
भाई | बालाराव और आनंदराव |
बहन | मंजुला, तुलसी, गंगाबाई लक्षगावडेकर, रामाबाई मालवनकर |
व्यवसाय | भारतीय विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद, समाजसुधारक व भारत के प्रथम कानून मंत्री |
प्रमुख कार्य | उन्होने अछूतो व जातिगत भेदभाव के खिलाफ अभियान चलाया। उन्होने भारतीय संविधान व राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। |
प्रसिद्ध विचार | बुद्धि का विकास मानव अस्तित्व का अतिम लक्ष्य होना चाहिए। शिक्षित बनों। संगठित रहो। सघर्ष करो। शिक्षा शेरनी का दुध है जो इसे पिएगा वेा शेर की तरह जरूर दहाडेगा। इतिहास बताता है कि जहां नैतिकता व अर्थशास्त्र के बिच संघर्ष होता है वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है। किसी भी कौम का विकास उस कौम की महिला के विकास से होता है। |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
स्कूल/विद्यालय | सतारा स्कूल महाराष्ट्र भारत सरकारी हाई स्कुल एल्फिंस्टोन |
महाविद्यालय/विश्वविद्यालय | बॉम्बे विश्वविद्यालय कॉलबिंया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क लंदन स्कुल ऑफ इकॉनोमिक्स ग्रेसिन्न, लंदन बर्लिन विश्वविद्यालय ओस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद भारत |
शैक्षिक योग्यता | बॉम्बे विश्वविद्यालय से स्नातक बॉम्बे विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र राजनीतिक शास्त्र, अर्थशास्त्र, और मानवविज्ञान में परास्नतक कॉलंबिया विश्वविद्यालय न्यूयॉर्क से पी.एच.डी. लंदन स्कुल ऑफ इकॉनोमिक्स एम.एस.सी ग्रेसिन्न, लंदन से बैरिस्टर एट लॉ लंदन स्कुल ऑफ इकॉनोमिक्स डी.एस.सी. कॉलंबिया विश्वविद्यालय न्यूयॉर्क से एल.एल.डी ओस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद भारत डी.लिट. |
शौक | पुस्तकें पढ़ना, संगीत सुनना और यात्रा करना |
धर्म | हिन्दु |
मृत्यु | 6 दिसम्बर 1956 |
मृत्यु का कारण | मधुमेह की लम्बी बिमारी से |
समाधि स्थल | चैत्यभूमि, मुबई |
जन्म एवं परिवार –
डॉ. भीमराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था। भीमराव आंबेडकर के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल था जो भारतीय सेना में सेवरत थे। और उनकी माता का नाम भीमाबाई था। भीमराव आंबेडकर जी अपने माता पिता की 14वीं सतांन थी। भीमराव जी का परिवार कबीर पंथ को मानने वाला मराठी मूल का था। वे एक ऐसे हिन्दु जाति से संबध रखते थे जिसे अछुत समझा जाता था। इस कारण उनके साथ समाज में भेदभाव किया जाता था। पहले भीमराव का उपनाम सकपाल था, पर उनके पिता ने अपने मूल गांव अंबाडवे के नाम पर उनका उपनाम अंबावडेकर लिखवाया जो बाद में आंबेडकर हो गया। भीमराव आंबेडकर के पूर्वज लंबे समय से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत थे। भीमराव आंबेडकर जी को दलित वर्ग के होने की वजह से काफी संघर्षो का सामना करना पड़ा था।
बचपन –
डॉ. भीमराव आंबेडकर का बचपन काफी कठिनार्इयों व परेशानियों से गुजरा है। पड़ाई करने के लिये जब वे स्कुल जाते थे तो उन्हे स्कुल में बैठा नहीि दिया जाता था जैसे तैसे वे स्कुल में बैठे तो उन्हे सबसे आखरी में बिठाया जाता था। जब उन्हे प्यास लगती तो उन्हे सार्वजनिक पानी को पिने व उसे छुने से रोक दिया जाता था। पानी जैसी होने वाले फर्क को वह सहन नही कर सका। बचपन में ही उनके मन में पहला विद्रोह इसी बात पर फुटा की बच्चों में उंच निच का फर्क क्यों? हांलाकी विद्रोह का दुष्परिणाम भी भीमराव को ही भुगतना पड़ा। भीमराव जी का जीवन दापोली और सतारा में बिता था। सतारा में जहां रामजी सुबेदार रहते थे। उनके पड़ोस में उन्ही के जैसे 10-15 पेंशेनर भी रहते थे। भीम अपना बस्ता स्कुल से आते ही फेंक देता और पड़ोस के बच्चों के साथ खेलने चला जाता। भीमराव आंबेडकर ने अपने बचपने में छुआछुत व भेदभाव के कारण काफी समस्याएं देखी थी। बचपन में जब एक बार भीमराव आंबेडकर ने एक कुंवे से पानी पी लिया था तो कुछ लोगो ने उन्हे देख लिया था और वहां से पानी पिने के लिये उनकी पिटाई की गई था, और चेतावनी दी थी की दौबारा यहां से पानी न पिये।
शिक्षा –
डॉ. भीमराव आंबेडकर के पिता के आर्मी में रहने की वजह से उन्हे सेना के बच्चो को दिए जाने वाले विशेषाधिकारों का फायदा मिला लेकिन उनके दलित होने की वजह से इस स्कूल में भी उन्हे जातिगत भेदभाव का शिकार होना पड़ा था दरअसल उनकी कास्ट के बच्चों को क्लास रूम के अंदर तक बैठने की अनुमति नही थी और तो और यहां उनको पानी भी नही छुने दिया जाता था वहीं अगर चपरासी छुटटी पर रहता था तो दलित बच्चों को उस दिन पानी भी नसीब नही होता था फिलहाल आंबेडकर जी ने तमाम संघर्षो के बाद अच्छी शिक्षा हासिल की।
आपको बता दें कि भीमराव आंबेडकर ने अपनी प्राथ्मिक शिक्षण दापोली में सातारा में लिया। इसके बाद उन्होनें बॉम्बे में एलफिंस्टोन हाईस्कूल में एडमिशन लिया इस तरह वे उच्च शिक्षा हासिल करने वाले पहले दलित बन गए। 1907 में उन्होने मैट्रिक की डिग्री हासिल की। इस अवसर पर एक समारोह का आयोजन किया गया इस समारोह में भीमराव अंबेडकर की प्रतिभा से प्रभावित होकर उनके शिक्षक श्री कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर ने उन्होने खुद से लिखी गयी किताब ‘बुद्ध चरित्र’ तोहफे के तौर पर दी। वहीं बड़ौदा नरेश सयाजी राव गायकवाड की फेलोशिप पाकर आंबेडकर जी ने अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखी।
आपको बता दें कि आंबेडकर जी की बचपन से ही पढ़ाई मं खासी रूचि थी और वे एक होनहार और कुशाग्र बुद्धि के विद्यार्थी थे इसलिये वे अपनी हर परीक्षा में अच्छे अंक के साथ सफल होते चले गए। 1908 में डॉ. भीमाव आंबेडकर ने एलफिंस्टोन कॉलेज में एडमिशन लेकर फिर इतिहास रच दिया। दरअसल वे पहले दलित विद्यार्थी थे जिन्होने उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए कॉलेज में दाखिला लिया था।
उन्होने 1912 में मुबई विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की परीक्षा पास की। संस्कृत पढ़ने पर मनाही होने से वह फारसी से उत्तीर्ण हुए। इस कॉलेज से उन्होने अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में डिग्री के साथ ग्रेजुएशन की उपाधि प्राप्त की।
बी.ए. के बाद एम.ए. के अध्ययन हेतु बड़ौदा नरेश सयाजी गायकवाड़ की पुन: फेलोशिप पाकर वह अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में दाखिल हुये। सन 1915 में उन्होने स्नाकोत्तर उपाधि की परीक्षा उत्तीर्ण की। इस हेतु उन्होन अपना शोध ‘प्राचीन भारत का वाणिज्य’ लिखा था। उसके बाद 1916 में कोलंबिया विश्वविद्यालय अमेरिका से ही उन्होने पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की, उनके पीएच.डी. शोध का विषय था ‘ब्रिटिश भारत में प्रातीय वित्त का विकेन्द्रीकरण’।
फैलोशिप खत्म होने पर उन्हे भारत लौटना पड़ा। वे ब्रिटेन होते हुए भारत वापस आ रहे थे। तभी उन्होने वहां लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स एण्ड पोलिटिकल सांइस में एम.एससी. और डी.एस.सी और विधि संस्थान में बार-एट-लॉ की उपाधि के लिए अपना रजिस्ट्रेंशन करवाया और फिर भारत लौटे।
भारत लौटने पर उन्होने सबसे पहले स्कॉलरशिप की शर्त के मुताबिक बड़ौदा के राजा के दरबार में सैनिक अधिकारी और वित्तीय सलाहकार का दायित्व स्वीकार किया। उन्होने राज्य के रक्षा सचिव के रूप में काम किया।
हालांकि उनके लिए ये काम इतना आसान नही था क्योंकि जातिगत भेदभाव और छूआछूत की वजह से उन्हे काफी पीड़ा सहनी पड़ रही थी यहां तक कि पूरे शहर में उन्हे किराए का मकान देने तक के लिए कोई तैयार नही था।
इसके बाद डॉ. भीमराव आंबेडकर ने सैन्य मंत्री की जॉब छोड़कर, एक निजी शिक्षक और एकांउटेट की नौकरी ज्वाइन कर ली। यहां उन्होने कंसलटेन्सी बिजनेस भी स्थापिता किया लेकिन यहां भी छूआछूत की बीमारी ने पीछा नही छोड़ा और सामाजिक स्थिति की वजह से उनका ये बिजनेस बर्बाद हो गया।
उसके बाद भीमराव आंबेडकर मुंबई वापस लौट गये और फिर उनकी मदद बॉम्बे सरकार ने की और वे मुंबई के सिडेनहम कॉलेज ऑफ एंड इकोनॉमिक में राजनैतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बन गए। वहां काम करके उन्होने अपनी आगे की पढ़ाई के लिए पैसे इकठठे किये। और 1920 में एक बार फिर वे भारत से बाहर पढ़ने के लिये इंग्लैड चले गये और अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखी।
1921 में उन्होने लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स एण्ड पोलिटिकल सांइस से मास्टर डिग्री हासिल की और दो साल बाद उन्होने अपना डी.एस.सी. की डिग्री प्राप्त की।
डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने बॉन जर्मनी विश्वविद्यालय में भी पढ़ाई के लिए कुछ महीने गुजारे। साल 1927 में उन्होने अर्थशास्त्र में डी.एस.सी. किया। भीमराव द्वारा कानून की पढ़ाई करने के बाद उन्होने ब्रिटिश बार में बैरिस्टर के रूप में काम किया। 08 जून, 1927 को उन्हे कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट से सम्मानित किया गया।
विवाह –
उस समय बालविवाह प्रचलित होने के कारण 1906 में आंबेडकर की शादी 9 साल की लड़की रमाबाई से हुई। उस समय आंबेडकर की उम्र महिज 15 साल की थी।
रमाबाई एक अच्छी और सीधी सादी लड़की थी। वह गरीब परिवार से थी। रमाबाई के माता-पिता बचपन में ही गुजर गए थे। रमाबाई की दो बहने जिसमे बडी का नाम गौरा और छोटी का नाम मीरा था तथा एक भाई शंकर जो चारो भाई-बहनों में सबसे छोटा था। सभी बच्चें बॉम्बे में अपने मामा और चाचा के यहां रहते थे।
भीमराव की शादी बहुत ही सीधे-सादे ढंग से रात के समय भयखला मार्केट के खुले शेड में हुई थी। न कोई मेज थी न कोई कुर्सी। दुकानों के पत्थर के प्लेटफार्म से बेंचो का काम लिया गया था। बचपन में रमाबाई का नाम रामी था जो विवाह के बाद रमा हो गया था। उसके बाद 1935 में रमाबाई की लंबी बीमारी की वजह से मृत्यु हो गई थी।
1940 में भारतीय संविधान का ड्राफट पूरा करने के बाद भीमराव अंबेडकर जी को भी कई बीमारियों ने जकड लिया था। इसके इलाज के लिये वे बॉम्बे गए जहां उनकी मुलाकात पहली बार एक ब्राहमण डॉक्टर शारदा कबीर से हुई। इसके बाद दोनो ने शादी करने का फैसला लिया और 1948 को दोनो शादी के बंधन में बंध गए। शादी के बाद डॉक्टर शारदा ने अपना नाम बदलकर सविता अंबेडकर रख लिया।
जाति व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन –
भारत लौटने पर उन्होने देश में जातिगत भेदभाव मिटाने का फैसला किया जिस पर उन्हे कई बार निराशा ही हाथ लगी और काफी कष्ट भी सहने पड़े। भीमराव आंबेडकर जी ने देखा की छूआछूत और जातिगत भेदभाव किस तरह देश को तोड़ रहा है और देश को कमजोर बना रहा है। अब तक छूआछूत की बीमारी काफी हद तक गंभीर हो चुकी थी उसके बाद आंबेडकर जी ने जातिगत भेदभाव के खिलाफ मोर्चा खड़ा कर दिया।
साल 1919 में भारत सरकार अधिनियम की तैयारी के लिए दक्षिणबोरो समिति से पहले अपनी ग्वाही में आंबेडकर ने कहा कि अछूतों और अन्य हाशिए समुदायों के लिए अगल निर्वाचन प्रणाली होनी चाहिए। उन्होने दलितों और अन्य धार्मिक बहिष्कारों के लिए आरक्षण का हम दिलवाने का प्रस्ताव भी रखा।
जातिगत भेदभाव व छूआछूत को खत्म करने के लिये आंबेडकर जी ने कई लोगो तक अपनी पहुंच बनाने और समाज में फैली बुराईयों को समझने के तरीको की खोज शुरू कर दी।
जातिगत भेदभाव को जड़ से खत्म करने और छूआछूत मिटाने के जूनून से आंबेडकर जी ने बहक्रित हिताकरिनी सभा का निर्माण कर दिया। यह संगठन् का मुख्य उददेश्य पिछडे वर्ग में शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक सुधार करना था।
इसके बाद 1920 में उन्होने कलकापुर के महाराजा शाहजी द्वितीय की सहायता से ‘मूकनायक’ सामाजिक पत्र की स्थापना की। अंबेडकर जी के इस कदम से पूरे देश के समाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में हलचल पैदा कर दी थी इसके बाद से लोगो ने भीमराव अंबेडकर को जानना भी शुरू कर दिया था।
डॉ. भीमराव आंबेडकर ने ग्रे के इन में बार कोर्स पूरा करने के बाद अपना कानून काम करना शुरू कर दिया और उन्होने जातिगत भेदभाव के मामलों की वकालत करने वाले विवादित कौशलों को लागू किया और जातिगत भेदभाव करने का आरोप ब्राहणों पर लगाया और कई गैर ब्राहमण नेताओं के लिए लडाई लडी और सफलता हासिल की इन्ही शानदार जीत की बदौलत उन्हे दलितों के उत्थान के लिए लडाई लडने के लिए आधार मिला।
डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने जातिगत भेदभाव व छूआछूत को मिटाने के लिये हिंसा का मार्ग न चुनकर महात्मा गांधी के पद चिन्हो पर चलकर अपनी लडाई लडी।
आंबेडकर जी ने दलितों के अधिकार के लिये यह मांग की थी की सार्वजनिक पेयजल सभी के लिये खोले जायें। और सभी जातियों को मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार मिले।
वर्ष 1932 में दलितों के अधिकारो के क्रुसेडर के रूप में आंबेडकर जी की लोकप्रियता बढती चली गई और उन्होने लंदन के गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लेने का निमंत्रण भी मिला। हालांकि इस सम्मेलन में दलितों के मसीहा अबेंडकर जी ने महात्मा गांधी के विचारधारा का विरोध भी किया जिन्होने एक अलग मतदाता के खिलाफ आवाज उठाई थी जिसकी उन्होने दलितो के चुनावो में हिस्सा बनने की मांग की थी।
लेकिन बाद में वे गांधी जी के विचरो को समझ गए जिसे पूना संधि भी कहा जाता है जिसके मुताबिक एक विशेष मतदाता की बजाय क्षेत्रीय विधायी विधानसभाओं और राज्यों की केद्रीय परिषद में दलित वर्ग को आरक्षण दिया गया था।
पूना संधि पर आंबेडकर और ब्राहमण समाज के प्रतिनिधि पंडित मदन मोहन मालवीय के बीच सामान्य मतदाताओं के अंदर अस्थाई विधानसभाओं के दलित वर्गो के लिए सीटों के आरक्षण के लिए पूना संधि पर भी हस्ताक्षर किये गये थे।
राजनैतिक करियर –
सन 1936 में भीमराव आंबेडरक जी ने ‘स्वतंत्र लेबर पार्टी का निर्माण किया। फिर भीमराव आंबेडकर जी ने 1937 में केन्द्रीय विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 15 सीटें जीती। उस वर्ष 1937 मे आंबेडकर जी ने अपनी पुस्तक ‘द एनीहिलेशन ऑफ कास्ट’ भी प्रकाशित की जिसमे उन्होने हिंदू रूढिवादी नेताओं की कठोर निंदा की और देश में प्रचलित जाति व्यवस्था की भी निंदा की। इसके बाद उन्होने ‘Who Were The Shudra’s?’ (कौन थे शुद्र) जिनमें उन्होने दलित वर्ग के गठन की व्याख्या की है।
जब भारत 15 अगस्त 1947 में जैसे ही अंग्रेजो की गुलामी से आजाद हुआ उसके बाद भीमराव आंबेडकर जी ने अपनी राजनीतिक पार्टी (स्वतंत्र लेबर पार्टी) को अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ पार्टी में बदल दिया। पर आंबेडकर जी की पार्टी 1946 के चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नही कर पाई थी जिसकी वजह से उनको हार का समना करना पडा।
उसके बाद महात्मा गांधी व कांग्रस ने दलित वर्ग के लोगो को हरिजन नाम दिया। लेकिन आंबेडकर जी ने गांधी जी का दिया गया हरिजन नाम को स्वीकार करने से इंकार कर दिया और उन्होने इसका विरोध किया।
इसके बाद आंबेडकर जी को वाइसराय एग्जीक्यूटिव कौंसिल में श्रम मंत्री और रक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया। अपने अनुभव, त्याग और संघर्ष के बल पर वे आजाद भारत के पहले लॉ मिनिस्टर बने।
भारतीय संविधान का गठन –
29 अगस्त 1947 को संविधान के मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में भीमराव आंबेडकर जी को नियुक्त किया गया। उन्होने समाज के सभी वर्गो के बीच एक वास्तविक पुल के निर्माण पर जोर दिया। उन्होने धार्मिक, लिंग, और जाति समानता पर खास जोर दिया।
आबेडकर जी ने समता, समानता, बन्धुता एवं मानवता आधारित भारतीय संविधान को करीब 2 साल, 11 महीने और 7 दिन की कडी मेहनत से 26 नवंबर 1949 को तैयार कर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ्. राजेन्द्र प्रसाद को सौंप कर देश के सभी नागरिकों को राष्ट्रीय एकता, अखंडता और व्यक्ति की गरिमा की जीवन पद्धति से भारतीय संस्कृति को अभिभूत किया।
भीमराव आंबेडरक जी ने निर्वाचन आयोग, योजना आयोग, वित्त आयोग, महिला पुरूष के लिये समान नागरिक हिन्दू संहिता, राज्य पुनर्गठन, बडे आकार के राज्य को छोटे आकार में संगठित करना, राज्य के नीति निर्देशक तत्व, मौलिक अधिकार, मानवाधिकार, काम्पट्रोलर और ऑडीटर जनरल, निर्वाचन आयुक्त और राजनीतिक ढांचे को मजबूत बनाने वाली सशक्त, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक एवं विदेश नीतियां भी बनाई।
सहकारी और सामूहिक खेती के साथ-साथ उपलब्ध जमीन का राष्ट्रीयकरण कर भूमि पर राज्य का स्वामित्व स्थापित करने और सार्वजनिक प्राथमिक उदयमों और बैंकिग, बीमा आदि उपक्रमों को राज्य नियंत्रण में रखने की पुरजोर सिफारिश की और किसानों की छोटी जोतेां पर निर्भर बेरोजगार श्रमिकों को रोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर प्रदान करने के लिए उन्होने औद्योगीकरण के लिए भी काफी काम किया था।
आंबेडकर द्वारा लिखी गई पुस्तकें –
1 | Castes in India: Their Mechanism, Genesis and Development |
2 | The Evolution Of Provincial Finance In British India |
3 | Annihilation Of Caste |
4 | Who Were The Shudras? |
5 | They and Why They Became Untouchables |
6 | Thoughts On Pakistan |
7 | The Buddha and His Dhamma |
8 | Budhha Or Karl Marx |
मृत्यु –
वर्ष 1954 और 1955 में डॉ. भीमराव आंबेडकर बिगडती सेहत से काफी पेरशान थे। उन्हे डायबिटीज, आंखो में धुंधलापन और अन्य कई तरह की बीमारियों ने घेर लिया था।जिसकी वजह से लगातार उनकी सेहत बिगड रही थी।
लंबी बीमारी के बाद उन्होने 6 दिसंबर 1956 को अपने घर दिल्ली में अंतिम सांस ली, उन्होने खुद को बौद्ध धर्म में बदल लिया था इसलिये उनका अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म की रीति-रिवाज के अनुसार ही किया गया उनके अंतिम संस्कार में सैकडो की तादाद में लोगो ने हिस्सा लिया और उनको अंतिम विदाई दी।
रौचक तथ्य –
1. 1990 में उन्हे मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया है।
2. भीमराव अंम्बेडकर जी का जन्म मध्य भारत प्रान्त (अब मध्यप्रदेश में) सैन्य छावनी महू में मराठी परिवार में हुआ था।
3. वह रामजी मालोजी और भीमाबाई की 14वीं सतांन थे।
4. बचपन से ही भीमराव गौतम बुद्ध की शिक्षा से प्रभावित थे।
5. अप्रैल 1906 में जब वह 15 वर्ष के थे तो उनकी शादी 9 वर्ष की लड़की रमाबाई से हुआ ।
6. भीमराव अम्बेडकर जॉन डेवी के लोकतंत्र निर्माण से काफी प्रभावित थे।
7. 9 मई को उन्होने मानव विज्ञानी अलेक्जेंडर गोल्डनवेइजर द्वारा आयोजित एक सेमिनार में ‘’भारत में जातियां प्रणाली, उत्पत्ति और विकास’’ पर एक लेख प्रस्तुत किया, जो उनका पहला प्रकाशित कार्य था।
8. जून 1917 में वे अपना अध्ययन अस्थाई रूप से बीच में ही छोड़कर भारत वापस लौट आये थे।
9. वर्ष 1932 में, जब ब्रिटिशों ने अम्बेडकर के साथ सहमति व्यक्त करते हुए, अछूतों को ‘’पृथक निर्वाचिका’’ देने की घोषणा की तब महात्मागांधी ने इसका विरोध करते हुए पुणे की यरवदा सेंट्रल जेल में आमरण अनशन शुरू किया।
10. 15 अगस्त 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार जब अस्तित्व में आई तब उन्होने भीमराव अम्बेडकर को देश के पहले कानून मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया।
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