Prachin bharat ke vishwavidhyalay – हेल्लो दोस्तों आज हम आपको इस पोस्ट के माध्यम से प्राचीन भारत के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय के बारे में बतायेगें, जो की प्राचीन समय में शिक्षा के क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध थे। Prachin Bharat Ke Prasidh vishwavidhyalay हम आपको उन प्राचीन विश्वविद्यालय के बारे में बातयेगें जिन्होने भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है। – प्राचीन भारत के प्रमुख शिक्षा केन्द्रो के नाम
प्राचीन भारत के विश्वविद्यालय
पुराने समय से ही भारत एक शिक्षा का सर्वश्रेष्ट केन्द्र रहा है। प्राचीन समय से आज तक शिक्षा का महत्व भारत में रहा है। प्राचीन समय से ही कई विश्वविद्यालय भारत में विख्यात रहे है। इन भारतीय प्राचिन विश्वविद्यालयों में देश के ही नही बाहर देश के भी यहा शिक्षा प्राप्त करने आते थे। आज हम उन्ही कुछ विश्वविद्यालय के बारे में आपको बतायेगें।
ओदंतपुरी – Odantapuri
ओदंतपुरी विश्वविद्यालय बिहार में स्थित था और पाल वंश के राजा गोपाल प्रथम के संरक्षण में इसे बनवाया गया था। यह बौद्ध महाविहार था। इसे बख्तियार खिलजी ने नष्ट भ्रष्ट कर दिया।
विक्रमशिला – Vikramshila
विक्रमशिला विश्वविद्यालय बिहार के वर्तमान भागलपुर जिले में स्थित था। पाल वंश के राजा धर्मपाल ने इसकी स्थापना की थी। यह मुख्य रूप से बौद्ध शिक्षा का केंद्र था। बौद्ध शिक्षा का प्रचार करने के लिए राजाओं द्वारा भारत के बाहर से विद्वानों को आमंत्रित किया जाता था। बुद्धत्व का वज्रयान संप्रदाय यहीं फला फूला था। यहां तांत्रिक शिक्षा भी दी जाती थी। तर्कशास्त्र, वेद, खगोल, विज्ञान, शहरी विकास, विधि, व्याकरण, दर्शन आदि जैसे अन्य विषय भी पढ़ाए जाते थे।
जगद्दल – Jagatdal
बंगाल में बौद्ध धर्म के वज्रयान संप्रदाय का शिक्षा का केंद्र था। नालंदा और विक्रमशिला के पतन के बाद कई विद्वानों ने यहां शरण ली। संभवतः पाल वंश के राजा रामपाल द्वारा इसकी स्थापना की गई थी।
वल्लभी – Valabhi
यह सौराष्ट्र, गुजरात में स्थित है। यह हीनयान बौद्ध धर्म की शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र था। प्रशासन और शासनकला, विधि, दर्शन आदि जैसे विभिन्न विषय यहां पढ़ाए जाते थे। चीनी विद्वान, ह्वेन त्सांग ने यहां भ्रमण किया था। गुजरात के मैत्रक वंश के शासकों के अनुदान द्वारा इसे सहायता दी गई थी।
नालंदा – Nalanda
यह दक्षिण एशिया का सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था। यह स्पष्ट नहीं है कि किसने इसकी स्थापना की थी; गुप्त काल में नालंदा विश्वविद्यालय अस्तित्व में था। हर्षवर्धन के शासनकाल और पाल राजाओं के अधीन इसने प्रतिष्ठा प्राप्त की। हालांकि, यहां तीनों बौद्ध सिद्धांत सिखाए जाते थे लेकिन यह महायान बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। वेद, ललित कला, व्याकरण, दर्शन, तर्कशास्त्र, चिकित्सा आदि जैसे विषय भी यहां पढ़ाए जाते थे। इसमें आठ अलग-अलग परिसर थे और यहां तक कि छात्रों के लिए छात्रावास भी थे। इसने मध्य एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया और विश्व के अन्य भागों से विद्वानों को आकर्षित किया। इस विश्वविद्यालय में शिक्षा तिब्बती बौद्ध धर्म से बहुत अधिक प्रभावित थी। नालंदा के प्रसिद्ध विद्वान नागार्जुन और आर्यभट्ट थे। ह्वेनत्सांग ने इस विश्वविद्यालय में 2 वर्ष बिताए थे एक और चीनी विद्वान इत्सिंग ने सातवीं सदी के उत्तरार्ध में नालंदा में 10 वर्ष बिताए थे।
तक्षशिला – Takshashila
वर्तमान समय में पाकिस्तान में स्थित है। यह लगभग पांचवी सदी ईसा पूर्व के आसपास अस्तित्व में रहा था। माना जाता है कि चाणक्य ने इसी स्थान पर अर्थशास्त्र की रचना की थी। बौद्ध और हिंदू दोनों धर्मशास्त्रियों को यहां पढ़ाया जाता था। राजनीति विज्ञान, शिकार, चिकित्सा, विधि, सैन्य रणनीति आदि जैसे विषय यहां पढ़ाए जाते थे। 405 ईसवी में फाह्मान यहां आया था। पाणिनि, चरक, चाणक्य, जीवक, प्रसेनजीत जैसे विद्वान इससे जुड़े थे।
कांचीपुरम – Kanchipuram
पहली सदी ईस्वी से हिंदू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म की शिक्षा का केंद्र था और पल्लवों के शासक के अधीन इसने बड़ी ही ख्याति प्राप्त की।
मान्यखेत – Manyakhet
इसे अब मल्खेड़ (कर्नाटक) कहा जाता है राष्ट्रकूट शासन के अधीन इसने ख्याति प्राप्त की। यहां जैन धर्म, बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के विद्वान अध्ययन करते थे। यहां द्वेत दर्शन संप्रदाय का ‘मठ’ भी था।
पुष्पगिरि विहार और ललितगिरी (ओडिशा)
उदयगिरि की पहाड़ियों के निकट लगभग 30 वीं सदी ईसवी के आसपास कलिंग राजाओं ने इसकी स्थापना की थी। यह मुख्य रूप से बौद्ध शिक्षा का केंद्र था।
शारदा पीठ – Sharda Pith
वर्तमान में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में स्थित है। यह संस्कृत विद्वानों के लिए महत्वपूर्ण स्थान था और यहां कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे गए यहां शारदा देवी का मंदिर भी था।
नागार्जुनकोंडा – Nagarjunakonda
यह आंध्र प्रदेश में अमरावती से 160 किलोमीटर दूर स्थित है और यह प्रमुख बौद्ध केंद्र था जहां उच्च शिक्षा के लिए श्रीलंका, चीन आदि से विद्वान आते थे। यहां कई विहार, स्तूप आदि थे। इसका नामकरण महायान बौद्ध धर्म के दक्षिण भारतीय विद्वान नागार्जुन के नाम पर किया गया था।
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